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श्रीशिवरक्षास्तोत्र

 विनियोग: – श्रीशिवरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य याज्ञवल्क्य ऋषि:, श्रीसदाशिवो देवता, अनुष्टुप् छन्द:, श्रीसदाशिवप्रीत्यर्थं शिवरक्षास्तोत्रजपे विनियोग: ।

अर्थ – विनियोग – इस शिवरक्षास्तोत्र मन्त्र के याज्ञवल्क्य ऋषि हैं, श्रीसदाशिव देवता हैं और अनुष्टुप छन्द है, श्रीसदाशिव की प्रसन्नता के लिए शिवरक्षास्तोत्र के जप में इसका विनियोग किया जाता है. 

 

गंगाधर: शिर: पातु भालमर्धेन्दुशेखर: ।

नयने मदनध्वंसी कर्णौ सर्पविभूषण: ।।3।।

अर्थ – गंगा को जटाजूट में धारण करने वाले गंगाधर शिव मेरे मस्त्क की, शिरोभूषण के रूप में अर्धचन्द्र को धारण करने वाले अर्धेन्दुशेखर मेरे ललाट की, मदन को ध्वंस करने वाले मदनदहन मेरे दोनों नेत्रों की, सर्प को आभूषण के रूप में धारण करने वाले सर्पविभूषण शिव मेरे कानों की रक्षा करें. 

 

घ्राणं पातु पुरारातिर्मुखं पातु जगत्पति:। 

जिह्वां वागीश्वर: पातु कन्धरां शितिकन्धर:।।4।।

अर्थ – त्रिपुरासुर के विनाशक पुराराति मेरे घ्राण (नाक) की, जगत की रक्षा करने वाले जगत्पति मेरे मुख की, वाणी के स्वामी वागीश्वर मेरी जिह्वा की, शितिकन्धर (नीलकण्ठ) मेरी गर्दन की रक्षा करें. 

 

श्रीकण्ठ: पातु मे कण्ठं स्कन्धौ विश्वधुरन्धर:।

भुजौ भूभारसंहर्ता करौ पातु पिनाकधृक् ।।5।।

अर्थ – श्री अर्थात सरस्वती यानी वाणी निवास करती है जिनके कण्ठ में, ऎसे श्रीकण्ठ मेरे कण्ठ की, विश्व की धुरी को धारण करने वाले विश्वधुरन्धर शिव मेरे दोनों कन्धों की, पृथ्वी के भारस्वरुप दैत्यादि का संहार करने वाले भूभारसंहर्ता शिव मेरी दोनों भुजाओं की, पिनाक धारण करने वाले पिनाकधृक मेरे दोनों हाथों की रक्षा करें. 

 

हृदयं शंकर: पातु जठरं गिरिजापति: ।

नाभिं मृत्युंजय: पातु कटी व्याघ्राजिनाम्बर: ।।6।।

अर्थ – भगवान शंकर मेरे हृदय की और गिरिजापति मेरे जठरदेश की रक्षा करें. भगवान मृत्युंजय मेरी नाभि की रक्षा करें तथा व्याघ्रचर्म को वस्त्ररूप में धारण करने वाले भगवान शिव मेरे कटि-प्रदेश की रक्षा करें. 

 

सक्थिनी पातु दीनार्तशरणागतवत्सल: ।

ऊरू महेश्वर: पातु जानुनी जगदीश्वर: ।।7।।

अर्थ – दीन, आर्त और शरणागतों के प्रेमी – दीनार्तशरणागतवत्सल मेरे समस्त सक्थियों (हड्डियों) की, महेश्वर मेरे ऊरूओं तथा जगदीश्वर मेरे जानुओं की रक्षा करें. 

 

जंघे पातु जगत्कर्ता गुल्फौ पातु गणाधिप: ।

चरणौ करुणासिन्धु: सर्वांगानि सदाशिव: ।।8।।

अर्थ – जगत्कर्ता मेरे जंघाओं की, गणाधिप दोनों गुल्फों (एड़ी की ऊपरी ग्रंथि) की, करुणासिन्धु दोनों चरणों की तथा भगवान सदाशिव मेरे सभी अंगों की रक्षा करें. 

 

शिव दारिद्रय दहन स्तोत्र

    

         शिव  दारिद्रय दहन स्तोत्र :  

  पढ़ने से दूर होते हैं आर्थिक संकट

    

विश्वेश्वराय नरकार्णवतारणाय कर्णामृताय
शशिशेखराय धारणाय कर्पूरकांति धवलाय जटाधराय
दारिद्रय दु:ख दहनाय नम: शिवाय...
 
गौरी प्रियाय रजनीश कलाधराय कालान्तकाय
भुजंगाधिप कंकणाय गंगाधराय गजराज विमर्दनाय
दारिद्रय दु:ख दहनाय नम: शिवाय...
 
भक्ति प्रियाय भवरोग भयापहाय
उग्राय दुर्गमभवसागर तारणाय
ज्योतिर्मयाय गुणनाम सुनृत्यकाय
दारिद्रय दु:ख दहनाय नम: शिवाय...
 
चर्माम्बराय शवभस्म विलेपनाय
भालेक्षणाय मणिकुंडल मण्डिताय
मंजीर पादयुगलाय जटाधराय
दारिद्रय दु:ख दहनाय नम: शिवाय....
 
पंचाननाय फणिराज विभूषणाय
हेमांशुकाय भुवनत्रय मण्डिताय
अनन्त भूमि वरदाय तमोमयाय
दारिद्रय दु:ख दहनाय नम: शिवाय...
 
भानुप्रियाय भवसागर तारणाय
कालान्तकाय कमलासन पूजिताय
नेत्रत्रयाय शुभलक्षण लक्षिताय
दारिद्रय दु:ख दहनाय नम: शिवाय...

रामप्रियाय रघुनाथ वर प्रदाय
नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय
पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय
दारिद्रय दु:ख दहनाय नम: शिवाय...
 
मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय
गति प्रियाय वृषभेश्वर वाहनाय
मातंग चर्मवसनाय महेश्वराय
दारिद्रय दु:ख दहनाय नम: शिवाय...

श्री गणपति अथर्वशीर्ष

 ॐ नमस्ते गणपतये।

त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि
त्वमेव केवलं कर्ताऽसि
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि
त्व साक्षादात्माऽसि नित्यम्।।1।।

ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।।2।।

अव त्व मां। अव वक्तारं।
अव श्रोतारं। अव दातारं।
अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं।
अव पश्चातात। अव पुरस्तात।
अवोत्तरात्तात। अव दक्षिणात्तात्।
अवचोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।।
सर्वतो मां पाहि-पाहि समंतात्।।3।।

त्वं वाङ्‍मयस्त्वं चिन्मय:।
त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:।
त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽसि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।।4।।

सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते।
सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।
सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति।
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:।
त्वं चत्वारिवाक्पदानि।।5।।

त्वं गुणत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।
त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:।
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं।
त्वं शक्तित्रयात्मक:।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं
रूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं
ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम्।।6।।

- प्रतिदिन 11 पाठ करने से जीवन में विघ्न बाधाओं से रक्षण होता है ! कार्यों में सफलता मिलने लगती है ! 

मां दुर्गा के 32 नाम

    दुर्गा, 

दुर्गतिशमनी, 
दुर्गाद्विनिवारिणी, 
दुर्ग मच्छेदनी, 
दुर्गसाधिनी, 
दुर्गनाशिनी, 
दुर्गतोद्धारिणी, 
दुर्गनिहन्त्री, 
दुर्गमापहा, 
दुर्गमज्ञानदा, 
दुर्गदैत्यलोकदवानला, 
दुर्गमा, 
दुर्गमालोका, 
दुर्गमात्मस्वरुपिणी, 
दुर्गमार्गप्रदा, 
दुर्गम विद्या, 
दुर्गमाश्रिता, 
दुर्गमज्ञान संस्थाना, 
दुर्गमध्यान भासिनी, 
दुर्गमोहा, दुर्गमगा, 
दुर्गमार्थस्वरुपिणी, 
दुर्गमासुर संहंत्रि, 
दुर्गमायुध धारिणी, 
दुर्गमांगी, 
दुर्गमता, 
दुर्गम्या, 
दुर्गमेश्वरी, 
दुर्गभीमा, 
दुर्गभामा, 
दुर्गमो, 
दुर्गोद्धारिणी। 

स्वामी रुपेश्वरानंद जी - एक परिचय

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